Saturday, February 19, 2011

पानी का लालच ले डूबा किसान को

बेदर्दी से भूजल दोहन बना घातक
रघुवीर शर्मा
 जिस प्रकार जुंआरी जल्दी धन कमाने की लालसा में खाली होने के बावजूद दांव पर दांव खेलता है और अन्तत: कंगाल हो जाता है। यही हालत आजकल राजस्थान प्रदेश के हाड़ौती क्षेत्र (कोटा-बूंदी-बारां व झालावाड़) के किसानों की हो रही है। अब शीत ऋतु में ही गांवों में पेयजल किल्लत की खबरें आना शुरू हो गई है। तो ग्रीष्म काल का अंदाजा अपने आप लग जाता है।
गत तीन चार वर्षो से अल्प वर्षा के चलते हाडौती अंचल का किसान पानी की लालसा में अपनी जीवनभर की कमाई को जमीन के दोहन में लगाकर कंगाल होने की श्रेणी में आ गया है। वर्षा की कमी के कारण कृषक वर्ग ने अपनी फसलों को पानी की कमी पूरा करने के लिए धरती के सीने को छेदा, हजारों की तादाद में किए बोरवेलों से भरपूर पानी निकाला और कृषि कार्य को अंजाम दिया। लेकिन अब भू जल भी जवाब दे गया है।
इसका परिणाम यह रहा कि हमारे बुजुर्गो की धरोहर जिन्हें उन्होंने गंगा-जमना मानकर संभाले  रखा और समय-समय पर पूजा भी वह कुंए-बावड़िया सूखती चली गई। वर्तमान में तो मानों इनका वजूद ही समाप्त सा हो गया है। धरती का पानी निकाल अच्छी फसलें तो किसानों ने कर ली। मुनाफा भी कमाया। लेकिन वह सब भौतिकता की भेंट चढ़ गया।  सुविधा भोगी हुए किसान ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रकृति का दोहन तो कर लिया लेकिन अब उसके पास कुछ नहीं बचा है। अब पशुओं और इंसानों के सामने पेयजल संकट की भारी समस्या आ खड़ी हुई है। वर्तमान में भी यह हाल है कि होडौती क्षेत्र के  गांवों में किसान खेतों में खड़ी हजारों बीघा फसलें जिनमें गेहंू,  सरसों, चना, लहसुन, व अन्य फसलें है को धरती के कलेजे में शेष बचे पानी को निकाल कर पिलाने में जुटा है। उसे आने वाली गर्मी के जल संकट की कोई चिन्ता नहीं दिखाई दे रही है। उसकी चिन्ता उसने सरकार पर छोड़ दी है। राजनेता व प्रशासन के अधिकारी भी गर्मी में पेयजल संकट को देखते हुए योजना बनाने में जुट गये है। उनको तो इस संकट में भी मलाई मिलने वाली है। गांवों में पीने का पानी सप्लाई होगा। हजारों टेंकरों के बिल बनेंगे। लाखों की हेरफेर होगी। नेताओं के कारिन्दें अपनी जेबें भरेंगे गर्मी निकल जाएगी। और फिर सब जस का तस हो जाएगा।
ऐसी कैसी दीवानगी
पानी के लिए क्षेत्र का किसान इस कदर दीवाना है कि वह ट्यूबवेल के लिए वोरिंग कराते समय एक-दो   बोर खाली हो जाने की परवाह नहीं कर लगातार चार-पांच बोरिंग कराता रहता है। चाहे उसे अपने कीमती गहने बेचकर व जमीन गिरवी रखकर ही पैसा क्यों नहीं चुकाना पड़े। इसके लिए दूसरे प्रदेशों से बोरिंग मशीने भी काफी मात्रा में क्षेत्र में विचरण करती दिखाई देती है। उन्होंने स्थानीय लोगों को अपना एजेन्ट बनाया हुआ है जो इनके लिए ग्राहक तलाशते रहते है। 

Adress-
Raghuveer Sharma
B-226, Mahavir Nagar-I
Jhalawad Road, Kota-324005
Rajsthan.9772222651

Thursday, February 17, 2011

यहाँ नशे की गिरफ्त में हैं महिलाएं और बच्चे

 यहाँ नशे की गिरफ्त में हैं महिलाएं और बच्चे
बारां जिला अन्तर्गत मांगरोल उपखंड़ के बमोरीकलां तिराहे की शराब की दुकान से शराब लेती महिला
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रघुवीर शर्मा
 
 
 
  
राजस्थान के ग्रामीण अंचल में इन दिनों शराब का काफी प्रचलन बढ़ने लगा है। कई घर उजाड़ चुके तथा बड़े कांड करवाने वाला यह नशा अब महिला व बच्चों पर भी अपना रंग चढ़ाता नजर आ रहा है। आने वाली युवा पीढ़ी जो देश का भविष्य है का आकर्षण इसकी और बढ़ रहा है, वहीं सबसे ज्यादा इसकी  इसका शिकार हो रही है।  सरकारी आबकारी नीति के चलते गांव-गांव ढाणी-ढाणी में खुली शराब की दुकानों ने इसकी खरीद खरीद आसान करने के साथ  युवा वर्ग को इस और आकर्षित कर लिया है।  शराब की दुकानों पर खरीद के लिए कम उम्र के बच्चे भी बे जिझक पहुंच रहे है।  वहीं शराब पीने के मामले में महिलाएं भी पीछे नहीं रही है। महिलाओं द्वारा भी बढ़ी संख्या में शराब का सेवन किया जा रहा है इसमें ज्यादातर संख्या मजदूर वर्ग के तहत आने वाली महिलाओं की है जो दिन भर खून पसीना बहाकर अपनी मेहनत के पैसे से शराब का सेवन कर अपने परिवार को आर्थिक रूप से पीछे धकेल रही है और साथ ही अपने बच्चों में गलत संस्कारों का समावेश भी कर रही है। एक दिन ग्रामीण क्षेत्र के प्रवास के दौरान बारां जिले के मांगरोल उपखंड में स्थित बमोरीकलां तिराहे पर स्थित अंग्रेजी शराब की दुकान पर देखने को मिला जब दो महिलाएं शराब की दुकान पर बैखोफ खड़ी  शराब लेती नजर आई। सरकार को चाहिए की शराब की दुकानों को पांबद किया जाये की कम उम्र के बच्चों को नहीं बेची जाए, तथा शराब की लत से दूर रखने के लिए महिलाओं को प्रेरित करने का प्रचार अभियान शुरू किया जायें।

Sunday, February 13, 2011

करोड़ों का व्यापार करने वाला, पहचान को तरसता कोटा का एक कस्बा

रघुवीर शर्माकरोड़ों का व्यापार, खनिज संपदा अपार, औद्योगिक स्तर पर गुलजार, कृषि की भरपूर पैदावार फिर भी नाम की दरकार यह कहानी है कोटा के रामगंजमंडी क्षेत्र की। रामगंजमंडी विशेषताएं तो अपने आप में खूब समेटे है, लेकिन वह नाम से दूसरों के जानी जाती है। रामगंजमंड़ी क्षेत्र में उत्पादित धनिया हो या लाइम स्टोन पसंद बहुत किये जाते है पर अपने नाम से नहीं पहचाने जाते, इसका कारण यहां के व्यापारी कमाई का गुण तो जानते हैं पर अपनी पहचान बनाने आज तक नहीं बना पाये।
                                                 स्टोन को मिला कोटा का नामरामगंजमंड़ी क्षेत्र में लाइम स्टोन की अपार खनिज संपदा जमीन में दबी है। यहां निकलने वाला पत्थर पूरे देश ही नहीं वरन् विदेश में भी अपनी पहचान बना चुका है, लेकिन इसकी पहचान रामगंजमंड़ी के नाम से नहीं होकर कोटा स्टोन के नाम से है, जबकि कोटा शहर के समीप छोटे से गांव में मंडाना में निकलने वाला पत्थर अपना पहचान रेड मंडाना के नाम से बनाने में कामयाब रहा है। वहीं रामगंजमंड़ी से सटे खीमच ग्राम में निकलने वाले खनिज ने खीमच पट्टी के नाम से पहचान बनाई है।
                                                      देश भर से आते हैं धनिया व्यापारी

यह सर्व विदित है कि रामगंजमंड़ी में कस्बे में धनिये का व्यापार काफी बड़ा है देश के हर कोने के व्यापारी  यहां से धनिए की खरीद करते है लेकिन जब उच्च क्वालिटी का नाम आता है तो बीनागंज व गुना का धनियां बाजी मार जाता है। वहीं उड़द जावरा के नाम से मशहूर है तो नीमच का नाम भी पोस्ता के लिए जाना जाता है हालांकि अब वहां इसका उत्पादन काफी कम हो गया है।
                                                     राजनीति में बाहरी सरताजयह तो थी व्यापार और कृषि उत्पादों की बात अब राजनीति के पन्ने पलट कर देखे तो यहां भी यही हाल नजर आते है। यहां के राजनेता भी स्थानीय के बजाय बाहर के व्यक्ति को सरताज बनाना पसंद रते हैं। दोनों प्रमुख दल भाजपा हो या कांग्रेस के स्थानीय जनता ने बाहर के नेताओं को मंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया। लेकिन उन नेताओं को आज भी राजनीति में रामगंजमंड़ी क्षेत्र के नेता के नाम से नहीं जाना जाता। जिस प्रकार जिस प्रकार रामगंजमंड़ी के नाम से धनियां, कोटा स्टोन व राजनेता नहीं जाने जाते वहीं हाल अब स्थानीय लेवल के नेताओं का भी हो गया है वह भी रामंगंजमड़ी के नेता नहीं होकर कोई धारीवालजी के यह वर्माजी के तथा कोई बैरवा जी, तो कोई मेघवालजी, भायाजी और गुंजलजी के नाम से पहचाने जाने लगे है। 

Friday, February 11, 2011

पनघटों पर पसरा सन्नाटा


   बुजुर्गों की विरासत को भूल गये लोग
जल स्तर गिरने से सूखे कुएं बावड़ी/ कचरा पात्र बने प्राचीन जल स्त्रोत
                                                                
    रघुवीर शर्मा


किसी दौर में एक गाना चला था -
...सुन-सुन रहट की आवाजें यूं लगे कहीं शहनाई बजे, आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे...
 जिस दौर का यह गाना है उस वक्त गांवों के कुएं बावड़ियों पर ऐसा ही नजारा होता था। शायद यही नजारा देख  गीतकार के मन में यह पंक्तियां लिखने की तमन्ना उठी होगी। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई है, गांवों में पनघटों पर पानी भरने वाली महिलाओं की पदचाप और रहट की शहनाई सी आवाज शांत है, और पनघट पर पसरा सन्नाटा है।
लोगों की जीवन रेखा सींचने वाले प्राचीन कुएं, बावड़ियां जो हर मौसम में लोगों की प्यास बुझाने थे कचरा डालने के काम के हो गये है। इन  परंपरागत जलस्त्रोतों की इस हालत के लिए आधुनिक युग के तकनीक के साथ-साथ सरकारी मशीनरी और हम स्वयं जिम्मेदार है जिन्होंने इनका मौल नहीं समझा। आज भी इनकी कोई फिक्र नहीं कर रहा है। ना तो आम नागरिकों को भी इनकी परवाह है, और नाही सरकार व पेयजल संकट के लिए आंदोलन करने वाले जनप्रतिनिधियों और नेताओं को इनकी याद आती है। सभी पेयजल समस्या को सरकार की समस्या मान कर ज्ञापन सौपते है चक्काजाम करते है और अपनी जिम्मेदारी की इति मान कर चुप बैठ जाते है। सरकार भी जहां पानी उपलब्ध है वहां से पानी मंगाती है लोगों में बंटवाती है और अपने वोट सुरक्षित कर अपनी जिम्मेदारी पूर्ण कर अगले साल आने वाले  संकट का इन्तजार करती रहती है।
सिर्फ बातें ही करते हैं
राजस्थान के कई कई कुओं, बावड़ियों में लोग कूड़ा-कचरा फेंक रहे हैं। सरकारी बैठकों में पानी समस्या पर चर्चा के समय कभी-कभी जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन कुओं और बावड़ियों की उपयोगिता इसकी ठीक से सार सम्भाल पर बतिया तो लेते हैंं, लेकिन बैठक तक ही उसे याद रखतें हैंं। बाद में इन कुओं, बावड़ियों को सब भूल जाते हैं।
पेयजल स्त्रोत देखरेख के अभाव में बदहाल हो गए है व अब महज सिर्फ कचरा-पात्र बनकर के काम आ रहे है। वैसे तो राज्य व केन्द्र सरकार ने प्राचीन जलस्त्रोतों के रखरखाव के लिए कई योजनाएं बना रखी है लेकिन सरकारी मशीनरी की इच्छा शक्ति और राजनैतिक सुस्ती के चलते यह महज कागजी साबित हो रही हैं। इसी कारण क्षेत्र में प्राचीन जलस्त्रोतों का अस्तित्व समाप्त सा होता जा रहा है।
हेण्डपंपों व ट्यूबवेलों को कुआं मान पूजन करने लगे है
हाड़ोति समेत राजस्थान के हजारों प्राचीन कुएं, बावड़ियां जर्जर हालत में है। अनेक तो कूड़ा से भर चुके हैं। इनका पानी भी दूषित हो चुका है।
 कुंए- बावड़ी जैसे जलस्त्रोतों का समय-समय पर होने वाले धार्मिक आयोजनों में भी विशेष महत्व होता था। शादी विवाह और बच्चों के जन्म के बाद कुआं पूजन की रस्म अदा की जाती थी लेकिन अब लोग कुओं की बिगड़ी हालत के कारण धार्मिक आयोजनों के समय हेण्डपंपों व ट्यूबवेलों को कुआं मान पूजन करने लगे है।  
अकाल में निभाया था साथ
क्षेत्र में यह कुंए करीब डेढ सौ -दो सौ वर्ष पुराने हैं। कस्बे के बुजुर्ग लोगों ने बताया कि सन 1956 के अकाल में जब चारों और पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची थी, उस समय भी इन कुंओ में पानी नहीं रीता था और लोगों ने अपनी प्यास बुझाई थी। 
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