tag:blogger.com,1999:blog-59933162980368647692024-02-19T04:32:55.677-08:00चंबल की आवाजरघुवीर शर्माhttp://www.blogger.com/profile/03893643434108320505noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5993316298036864769.post-85590098789967571772020-03-29T06:25:00.003-07:002020-03-29T06:26:44.388-07:00दिहाड़ी मजदूरों के लिए मुसीबत बना लॉकडाउनदिहाड़ी मजदूरों के लिए मुसीबत बना लॉकडाउन
प्रधानमंत्री मोदी की और से राष्ट्र के नाम संबोधन में की गई 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा और जनता से की गई सहयोग अपील का असर देश में देखने को मिल रहा है। यह देश को बड़ी मुसीबत से बचाने के लिए लिया गया निर्णय हैं। अचानक लेकिन जनता के हित में लिए गए इस निर्णय से कई परेशानियां खड़ी हो गई है। खासकर असंगठित क्षेत्र के कामगारों के सामने तो लॉकडाउन बड़ी समस्या बनकर आया है। उसका रोजगार छीन गया और साथ ही रहने खाने की समस्या खड़ी हो गई। इनके से सैंकड़ों वह लोग है जो छोटे-मोटे कारखानों दुकानों ढाबों, होटल सहित ऐसी जगहों पर दिहाड़ी मजदूर थे जो बंद हो गए। अचानक आई इस समस्या ने इनके सिर से छत और पेट भरने की मुसीबत खड़ी कर दी।
अभी लॉकडाउन के दो दिन बीते है इसके परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं। प्रवासी मजदूरों के रेले सड़कों पर अपने घर जाते हुए देखे जा रहे हैं। ये वो लोग है जिके पास जहां काम कर रहे थे वहां कोई स्थाई रहने का ठिकाना नहीं था।
यह समस्या किसी एक प्रदेश या शहर में नहीं सारे देश में है। लॉकडाउन में पीएम का ये संदेश कि ''जो जहां है वहीं रहेÓÓ पर अमल करना इनके लिए कैसे भी संभव नहीं रहा हैं। यातायात के साधन बंद होना इस मुसीबत में एक और समस्या बनी। यह लोग पैदल ही अपने स्थाई बसेरे की और चल दिए हैं। कोरोना से जंग जीतने में इनका पलायन बड़ा रोड़ा बन सकता हैं। क्योंकि किसी को नहीं पता इनमें कौन संक्रमित है जो आगे जाकर कोरोना वाइरस का वाहक बनेेगा।
केन्द्र व राज्य सरकारों की और से कोरोना की जंग के लिए घोषित किए राहत पैकेज भी इनके लिए कोई काम नहीं आने वाले हैं। क्योंकि ना तो इनको ये मालूम है कि फ्री के गेहूं-चावल कहां से मिलेगें और अगर मिल भी गये तो ये लोग इनके पास उसे खाने योग्य बनाने की जगह नहीं हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को कारगर रणनीति बनाने की जरूरत है जिसके तहत पलायन को मजबूर कामगारों को रहने खाने की व्यवस्था की जाए। जिससे उनका पलायन तो रूकेगा ही बल्कि उनमें से कोई संक्रमित है तो उसकी भी स्क्रीनिंग की जा सकेगी।
रघुवीर शर्माhttp://www.blogger.com/profile/03893643434108320505noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5993316298036864769.post-67765771752514490262011-02-19T06:01:00.000-08:002011-02-19T06:01:41.519-08:00पानी का लालच ले डूबा किसान को<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="gmail_quote"><strong>बेदर्दी से भूजल दोहन बना घातक<br />
रघुवीर शर्मा</strong> जिस प्रकार जुंआरी जल्दी धन कमाने की लालसा में खाली होने के बावजूद दांव पर दांव खेलता है और अन्तत: कंगाल हो जाता है। यही हालत आजकल राजस्थान प्रदेश के हाड़ौती क्षेत्र (कोटा-बूंदी-बारां व झालावाड़) के किसानों की हो रही है। अब शीत ऋतु में ही गांवों में पेयजल किल्लत की खबरें आना शुरू हो गई है। तो ग्रीष्म काल का अंदाजा अपने आप लग जाता है। <br />
गत तीन चार वर्षो से अल्प वर्षा के चलते हाडौती अंचल का किसान पानी की लालसा में अपनी जीवनभर की कमाई को जमीन के दोहन में लगाकर कंगाल होने की श्रेणी में आ गया है। वर्षा की कमी के कारण कृषक वर्ग ने अपनी फसलों को पानी की कमी पूरा करने के लिए धरती के सीने को छेदा, हजारों की तादाद में किए बोरवेलों से भरपूर पानी निकाला और कृषि कार्य को अंजाम दिया। लेकिन अब भू जल भी जवाब दे गया है। <br />
इसका परिणाम यह रहा कि हमारे बुजुर्गो की धरोहर जिन्हें उन्होंने गंगा-जमना मानकर संभाले रखा और समय-समय पर पूजा भी वह कुंए-बावड़िया सूखती चली गई। वर्तमान में तो मानों इनका वजूद ही समाप्त सा हो गया है। धरती का पानी निकाल अच्छी फसलें तो किसानों ने कर ली। मुनाफा भी कमाया। लेकिन वह सब भौतिकता की भेंट चढ़ गया। सुविधा भोगी हुए किसान ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रकृति का दोहन तो कर लिया लेकिन अब उसके पास कुछ नहीं बचा है। अब पशुओं और इंसानों के सामने पेयजल संकट की भारी समस्या आ खड़ी हुई है। वर्तमान में भी यह हाल है कि होडौती क्षेत्र के गांवों में किसान खेतों में खड़ी हजारों बीघा फसलें जिनमें गेहंू, सरसों, चना, लहसुन, व अन्य फसलें है को धरती के कलेजे में शेष बचे पानी को निकाल कर पिलाने में जुटा है। उसे आने वाली गर्मी के जल संकट की कोई चिन्ता नहीं दिखाई दे रही है। उसकी चिन्ता उसने सरकार पर छोड़ दी है। राजनेता व प्रशासन के अधिकारी भी गर्मी में पेयजल संकट को देखते हुए योजना बनाने में जुट गये है। उनको तो इस संकट में भी मलाई मिलने वाली है। गांवों में पीने का पानी सप्लाई होगा। हजारों टेंकरों के बिल बनेंगे। लाखों की हेरफेर होगी। नेताओं के कारिन्दें अपनी जेबें भरेंगे गर्मी निकल जाएगी। और फिर सब जस का तस हो जाएगा। <br />
<u><strong>ऐसी कैसी दीवानगी</strong></u><br />
पानी के लिए क्षेत्र का किसान इस कदर दीवाना है कि वह ट्यूबवेल के लिए वोरिंग कराते समय एक-दो बोर खाली हो जाने की परवाह नहीं कर लगातार चार-पांच बोरिंग कराता रहता है। चाहे उसे अपने कीमती गहने बेचकर व जमीन गिरवी रखकर ही पैसा क्यों नहीं चुकाना पड़े। इसके लिए दूसरे प्रदेशों से बोरिंग मशीने भी काफी मात्रा में क्षेत्र में विचरण करती दिखाई देती है। उन्होंने स्थानीय लोगों को अपना एजेन्ट बनाया हुआ है जो इनके लिए ग्राहक तलाशते रहते है। </div><div><br />
<strong>Adress-</strong></div><div><strong>Raghuveer Sharma</strong></div><div><strong>B-226, Mahavir Nagar-I</strong></div><div><strong>Jhalawad Road, Kota-324005</strong></div><div><strong>Rajsthan.9772222651</strong></div></div>रघुवीर शर्माhttp://www.blogger.com/profile/03893643434108320505noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5993316298036864769.post-3840155097919731612011-02-17T08:42:00.000-08:002011-02-17T08:42:35.951-08:00यहाँ नशे की गिरफ्त में हैं महिलाएं और बच्चे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><strong> यहाँ नशे की गिरफ्त में हैं महिलाएं और बच्चे</strong><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdZ_PPXiVM85G6BNzNGBQWMcHrDTu2XSMuyH8pkkbyOXyAfSz9pQbsIJ7XeQ0EmFD_JfViK5zc99zUJ6LvrCfL5_AgOx4aoA8Po6HG2MW-IjeCefrmn2j6ZyVJ0jQNhiQox6Pg94tCkWBX/s1600/women+buying+wine.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" j6="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdZ_PPXiVM85G6BNzNGBQWMcHrDTu2XSMuyH8pkkbyOXyAfSz9pQbsIJ7XeQ0EmFD_JfViK5zc99zUJ6LvrCfL5_AgOx4aoA8Po6HG2MW-IjeCefrmn2j6ZyVJ0jQNhiQox6Pg94tCkWBX/s320/women+buying+wine.jpg" width="310" /></a></div><strong><div><span></span>बारां जिला अन्तर्गत मांगरोल उपखंड़ के बमोरीकलां तिराहे की शराब की दुकान से शराब लेती महिला</div>----<br />
रघुवीर शर्मा <br />
<div> </div><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: left;"> </div><div> </div></strong>राजस्थान के ग्रामीण अंचल में इन दिनों शराब का काफी प्रचलन बढ़ने लगा है। कई घर उजाड़ चुके तथा बड़े कांड करवाने वाला यह नशा अब महिला व बच्चों पर भी अपना रंग चढ़ाता नजर आ रहा है। आने वाली युवा पीढ़ी जो देश का भविष्य है का आकर्षण इसकी और बढ़ रहा है, वहीं सबसे ज्यादा इसकी इसका शिकार हो रही है। सरकारी आबकारी नीति के चलते गांव-गांव ढाणी-ढाणी में खुली शराब की दुकानों ने इसकी खरीद खरीद आसान करने के साथ युवा वर्ग को इस और आकर्षित कर लिया है। शराब की दुकानों पर खरीद के लिए कम उम्र के बच्चे भी बे जिझक पहुंच रहे है। वहीं शराब पीने के मामले में महिलाएं भी पीछे नहीं रही है। महिलाओं द्वारा भी बढ़ी संख्या में शराब का सेवन किया जा रहा है इसमें ज्यादातर संख्या मजदूर वर्ग के तहत आने वाली महिलाओं की है जो दिन भर खून पसीना बहाकर अपनी मेहनत के पैसे से शराब का सेवन कर अपने परिवार को आर्थिक रूप से पीछे धकेल रही है और साथ ही अपने बच्चों में गलत संस्कारों का समावेश भी कर रही है। एक दिन ग्रामीण क्षेत्र के प्रवास के दौरान बारां जिले के मांगरोल उपखंड में स्थित बमोरीकलां तिराहे पर स्थित अंग्रेजी शराब की दुकान पर देखने को मिला जब दो महिलाएं शराब की दुकान पर बैखोफ खड़ी शराब लेती नजर आई। सरकार को चाहिए की शराब की दुकानों को पांबद किया जाये की कम उम्र के बच्चों को नहीं बेची जाए, तथा शराब की लत से दूर रखने के लिए महिलाओं को प्रेरित करने का प्रचार अभियान शुरू किया जायें। </div>रघुवीर शर्माhttp://www.blogger.com/profile/03893643434108320505noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5993316298036864769.post-85374600786079174382011-02-13T11:31:00.000-08:002011-02-13T11:31:00.653-08:00करोड़ों का व्यापार करने वाला, पहचान को तरसता कोटा का एक कस्बा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><strong>रघुवीर शर्मा</strong>करोड़ों का व्यापार, खनिज संपदा अपार, औद्योगिक स्तर पर गुलजार, कृषि की भरपूर पैदावार फिर भी नाम की दरकार यह कहानी है कोटा के रामगंजमंडी क्षेत्र की। रामगंजमंडी विशेषताएं तो अपने आप में खूब समेटे है, लेकिन वह नाम से दूसरों के जानी जाती है। रामगंजमंड़ी क्षेत्र में उत्पादित धनिया हो या लाइम स्टोन पसंद बहुत किये जाते है पर अपने नाम से नहीं पहचाने जाते, इसका कारण यहां के व्यापारी कमाई का गुण तो जानते हैं पर अपनी पहचान बनाने आज तक नहीं बना पाये। <br />
<strong> स्टोन को मिला कोटा का नाम</strong>रामगंजमंड़ी क्षेत्र में लाइम स्टोन की अपार खनिज संपदा जमीन में दबी है। यहां निकलने वाला पत्थर पूरे देश ही नहीं वरन् विदेश में भी अपनी पहचान बना चुका है, लेकिन इसकी पहचान रामगंजमंड़ी के नाम से नहीं होकर कोटा स्टोन के नाम से है, जबकि कोटा शहर के समीप छोटे से गांव में मंडाना में निकलने वाला पत्थर अपना पहचान रेड मंडाना के नाम से बनाने में कामयाब रहा है। वहीं रामगंजमंड़ी से सटे खीमच ग्राम में निकलने वाले खनिज ने खीमच पट्टी के नाम से पहचान बनाई है। <br />
<strong> देश भर से आते हैं धनिया व्यापारी</strong> <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjzbPVrAMVfP4HkL5MwDdZRomS8-EvR2eFYtIrTj5J9OcF9I4uSmbKgP59DrP8Ws-0ACRq8BHSdq-Rh7VtBzoLSODhdE3uyQYdVvjiTh6plkMnDp0oOrR2l8d3sZs9AShMbiPZqz5yaeRIw/s1600/dhaniya.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" h5="true" height="230" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjzbPVrAMVfP4HkL5MwDdZRomS8-EvR2eFYtIrTj5J9OcF9I4uSmbKgP59DrP8Ws-0ACRq8BHSdq-Rh7VtBzoLSODhdE3uyQYdVvjiTh6plkMnDp0oOrR2l8d3sZs9AShMbiPZqz5yaeRIw/s320/dhaniya.jpg" width="320" /></a></div><br />
यह सर्व विदित है कि रामगंजमंड़ी में कस्बे में धनिये का व्यापार काफी बड़ा है देश के हर कोने के व्यापारी यहां से धनिए की खरीद करते है लेकिन जब उच्च क्वालिटी का नाम आता है तो बीनागंज व गुना का धनियां बाजी मार जाता है। वहीं उड़द जावरा के नाम से मशहूर है तो नीमच का नाम भी पोस्ता के लिए जाना जाता है हालांकि अब वहां इसका उत्पादन काफी कम हो गया है। <br />
<strong> राजनीति में बाहरी सरताज</strong>यह तो थी व्यापार और कृषि उत्पादों की बात अब राजनीति के पन्ने पलट कर देखे तो यहां भी यही हाल नजर आते है। यहां के राजनेता भी स्थानीय के बजाय बाहर के व्यक्ति को सरताज बनाना पसंद रते हैं। दोनों प्रमुख दल भाजपा हो या कांग्रेस के स्थानीय जनता ने बाहर के नेताओं को मंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया। लेकिन उन नेताओं को आज भी राजनीति में रामगंजमंड़ी क्षेत्र के नेता के नाम से नहीं जाना जाता। जिस प्रकार जिस प्रकार रामगंजमंड़ी के नाम से धनियां, कोटा स्टोन व राजनेता नहीं जाने जाते वहीं हाल अब स्थानीय लेवल के नेताओं का भी हो गया है वह भी रामंगंजमड़ी के नेता नहीं होकर कोई धारीवालजी के यह वर्माजी के तथा कोई बैरवा जी, तो कोई मेघवालजी, भायाजी और गुंजलजी के नाम से पहचाने जाने लगे है। </div>रघुवीर शर्माhttp://www.blogger.com/profile/03893643434108320505noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5993316298036864769.post-40756415135783701262011-02-11T07:05:00.000-08:002011-02-12T05:56:01.989-08:00पनघटों पर पसरा सन्नाटा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<blockquote class=""><div dir="rtl" style="text-align: right;"> <strong>बुजुर्गों की विरासत को भूल गये लोग</strong></div><blockquote class=""><div class="separator" dir="rtl" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjL4BaiAXGrZtaG_5ubtgsCC7g5RM_x51EW3ONBp49mGHS53oN805M0h4-xjHakFAnWuS5idGLXAePu9YwtDjizDuGB6ieiJENnSI5sINvD86sGf_KJLSJ8Q467Ky6V3yZb2TiWDSrS3L4Z/s1600/panghat.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" h5="true" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjL4BaiAXGrZtaG_5ubtgsCC7g5RM_x51EW3ONBp49mGHS53oN805M0h4-xjHakFAnWuS5idGLXAePu9YwtDjizDuGB6ieiJENnSI5sINvD86sGf_KJLSJ8Q467Ky6V3yZb2TiWDSrS3L4Z/s320/panghat.jpg" width="320" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjL4BaiAXGrZtaG_5ubtgsCC7g5RM_x51EW3ONBp49mGHS53oN805M0h4-xjHakFAnWuS5idGLXAePu9YwtDjizDuGB6ieiJENnSI5sINvD86sGf_KJLSJ8Q467Ky6V3yZb2TiWDSrS3L4Z/s1600/panghat.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a><strong>जल स्तर गिरने से सूखे कुएं बावड़ी/ कचरा पात्र बने प्राचीन जल स्त्रोत </strong></div><div dir="rtl" style="text-align: right;"> </div></blockquote></blockquote><strong> रघुवीर शर्मा</strong><br />
<br />
<br />
किसी दौर में एक गाना चला था - <br />
<strong><em>...सुन-सुन रहट की आवाजें यूं लगे कहीं शहनाई बजे, आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे...</em></strong><br />
जिस दौर का यह गाना है उस वक्त गांवों के कुएं बावड़ियों पर ऐसा ही नजारा होता था। शायद यही नजारा देख गीतकार के मन में यह पंक्तियां लिखने की तमन्ना उठी होगी। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई है, गांवों में पनघटों पर पानी भरने वाली महिलाओं की पदचाप और रहट की शहनाई सी आवाज शांत है, और पनघट पर पसरा सन्नाटा है। <br />
लोगों की जीवन रेखा सींचने वाले प्राचीन कुएं, बावड़ियां जो हर मौसम में लोगों की प्यास बुझाने थे कचरा डालने के काम के हो गये है। इन परंपरागत जलस्त्रोतों की इस हालत के लिए आधुनिक युग के तकनीक के साथ-साथ सरकारी मशीनरी और हम स्वयं जिम्मेदार है जिन्होंने इनका मौल नहीं समझा। आज भी इनकी कोई फिक्र नहीं कर रहा है। ना तो आम नागरिकों को भी इनकी परवाह है, और नाही सरकार व पेयजल संकट के लिए आंदोलन करने वाले जनप्रतिनिधियों और नेताओं को इनकी याद आती है। सभी पेयजल समस्या को सरकार की समस्या मान कर ज्ञापन सौपते है चक्काजाम करते है और अपनी जिम्मेदारी की इति मान कर चुप बैठ जाते है। सरकार भी जहां पानी उपलब्ध है वहां से पानी मंगाती है लोगों में बंटवाती है और अपने वोट सुरक्षित कर अपनी जिम्मेदारी पूर्ण कर अगले साल आने वाले संकट का इन्तजार करती रहती है। <br />
सिर्फ बातें ही करते हैं<br />
राजस्थान के कई कई कुओं, बावड़ियों में लोग कूड़ा-कचरा फेंक रहे हैं। सरकारी बैठकों में पानी समस्या पर चर्चा के समय कभी-कभी जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन कुओं और बावड़ियों की उपयोगिता इसकी ठीक से सार सम्भाल पर बतिया तो लेते हैंं, लेकिन बैठक तक ही उसे याद रखतें हैंं। बाद में इन कुओं, बावड़ियों को सब भूल जाते हैं। <br />
पेयजल स्त्रोत देखरेख के अभाव में बदहाल हो गए है व अब महज सिर्फ कचरा-पात्र बनकर के काम आ रहे है। वैसे तो राज्य व केन्द्र सरकार ने प्राचीन जलस्त्रोतों के रखरखाव के लिए कई योजनाएं बना रखी है लेकिन सरकारी मशीनरी की इच्छा शक्ति और राजनैतिक सुस्ती के चलते यह महज कागजी साबित हो रही हैं। इसी कारण क्षेत्र में प्राचीन जलस्त्रोतों का अस्तित्व समाप्त सा होता जा रहा है। <br />
<strong>हेण्डपंपों व ट्यूबवेलों को कुआं मान पूजन करने लगे है</strong><br />
हाड़ोति समेत राजस्थान के हजारों प्राचीन कुएं, बावड़ियां जर्जर हालत में है। अनेक तो कूड़ा से भर चुके हैं। इनका पानी भी दूषित हो चुका है।<br />
कुंए- बावड़ी जैसे जलस्त्रोतों का समय-समय पर होने वाले धार्मिक आयोजनों में भी विशेष महत्व होता था। शादी विवाह और बच्चों के जन्म के बाद कुआं पूजन की रस्म अदा की जाती थी लेकिन अब लोग कुओं की बिगड़ी हालत के कारण धार्मिक आयोजनों के समय हेण्डपंपों व ट्यूबवेलों को कुआं मान पूजन करने लगे है। <br />
<strong>अकाल में निभाया था साथ</strong> <br />
क्षेत्र में यह कुंए करीब डेढ सौ -दो सौ वर्ष पुराने हैं। कस्बे के बुजुर्ग लोगों ने बताया कि सन 1956 के अकाल में जब चारों और पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची थी, उस समय भी इन कुंओ में पानी नहीं रीता था और लोगों ने अपनी प्यास बुझाई थी। <br />
0000</div>रघुवीर शर्माhttp://www.blogger.com/profile/03893643434108320505noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5993316298036864769.post-32196333002441207492011-01-14T09:29:00.000-08:002011-01-14T09:29:12.285-08:00सिर्फ सरकार गिराने वाले प्याज की ही चिंता क्यों?<strong>सभी खाद्य पदार्थो के भाव आसमान पर <br />
रघुवीर शर्मा<br />
कोटा।</strong> अकेले प्याज की कमी को लेकर देश व प्रदेश की सरकार व प्रशासनिक हल्कों में इन दिनों तगड़ी हलचल है। पूरा मंत्री समूह बैठकर चिन्तन कर रहा है लेकिन कोई उपाय नहीं सूझ रहा। मंत्री मंहगाई का ठीकरा एक दूसरे के सिर फोड़ रहे है और प्रधानमंत्री असहाय होकर सारा नजारा देख रहे है। उनके पास करने को कुछ नहीं रह गया है। <br />
कभी प्याज की कीमतों के बढ़ने का ठीकरा एनडीए सरकार के सिर पर फोड़कर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार अब खुद प्याज को लेकर चिन्ता में डूबी हुई है, जबकि आज हालत यह है कि आम आदमी के रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले खाद्य पदार्थ गेहूं, चावल, दालें, मिर्च-मसाला, तेल आदि के भाव भी तो आसमान छू रहे हैं इन पर कोई चिन्ता नहीं की जा रही। जबकि प्याज की फसल खराब होने से अगर इसके दाम बढ़े है तो लोग इसका उपयोग कम कर सकते हैं। जिसकी हैसियत होगी वह खाएगा नहीं तो बिना प्याज के भी जिन्दगी चल सकती है। वैसे भी बाजार में प्याज के उपयोग के विकल्प लोगों ने कोज लिए है अब सलाद में प्याज कम व अन्य सामग्री की प्रयोग लोग कर रहे है। लेकिन रसोई में काम आने वाले सभी खाद्य पदार्थो की कीमतों में दोगुनी वृद्वि के बावजूद सरकार को सिर्फ प्याज की ही चिन्ता क्यों सता रही है। जबकि बाकी तमाम खाद्य वस्तुए आम आदमी के दैनिक उपभोग से जुड़ी हुई है। सरकार अकेले प्याज का हो हल्ला कर अन्य वस्तुएं के बढे दामों से जनता का ध्यान बांटना चाहती है जबकि देश में प्याज खाने वालों की संख्या इतनी अधिक नही जितनी चिन्ता सरकार प्याज को लेकर कर रही है। जिन वस्तुओं के दाम बढ़े है उन सब पर चिन्ता सरकार को करनी चाहिए। क्या प्याज की तरह सभी चीजों पर प्राकृतिक आपदा का कहर टूटा है। मै कहता हूं कि सरकार को अपने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से सबक लेना चाहिए जिन्होंने विदेश से मंहगा गेंहूं मंगाने के बजाय यह कहा था कि मेरे देश का आदमी एक समय उपवास कर लेगा तो इतना गेहूं बच जाएगा कि हमें बाहर से आयात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस सरकार को भी चाहिए कि वह अगर सरकार देश की जनता को अपील जारी कर दें कि एक माह प्याज का उपयोग नहीं करें तो प्याज का स्टॉक कर रहे मुनाफाखोरों के हौसले पस्त हो सकते है। न डिमाण्ड रहेगी ना ही दाम बढ़ेगें मुनाफा खोर कितने दिन प्याज का स्टॉक अपने पास रख सकते है। यही इस समस्या का निदान काफी है लेकिन सरकार को रोजमर्रा की काम आने वाली गेहूं, चीनी, चावल, तेल, दाल, मसाला, मिर्च, हल्दी आदि के भाव दोगुने होने पर भी चिन्ता करना चाहिए। जिनके दाम आसमान छूने के बावजूद भी सरकार इनके नियन्त्रण पर कोई चिन्ता व्यक्त नही कर रही। पिछले दो वर्ष में शक्कर के भाव दोगुने हो गये। इसी प्रकार रसौई में काम आने वाली सभी चीजों के भाव दोगुने से कम नहीं है इसलिए सरकार को प्याज पर से ध्यान हटाकर आम उपभोक्ता वस्तुओं की ओर अपना ध्यान जोड़ना चाहिए जिससे लोगों को दोगुने दाम पर मिल रही खाद्य सामग्री से राहत मिल सके और महंगाई पर लगाम लग सके। <br />
सामान्य परिवार की कई गृहिणियों से जब प्याज की कीमतों के बारे में राय जानी तो उनका सटीक जवाब था प्याज-लहसुन जाए भाड़ में सभी चीजों के दाम बढ़े है आम आदमी प्याज खाना छोड़ सकता है खाने की थाली नहीं छोड़ सकता। इसलिए सरकार को अन्य उपभोक्ता सामग्री के भावों में कमी लाने की कवायद करनी चाहिए ताकि लोगों की रसोई में बढ़ रहे खर्चे पर अंकुश लग सके।रघुवीर शर्माhttp://www.blogger.com/profile/03893643434108320505noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5993316298036864769.post-57464227272036932072011-01-14T07:29:00.000-08:002011-01-14T07:29:00.096-08:00शुभकामनायें.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzh4WM5VCifxyRTnReylGLkEGsrRHsES4PZZvxxSv4U8ySkP3Uzff7eT6zLMfuero5QklPVDDIX8JbXfaOGbC8lFLyLidvEIOmcGrAjf4aTOA1WLBtOLWjxCM1lbdg75qIOeTkQz8nI6rX/s1600/dixit+007.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" n4="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzh4WM5VCifxyRTnReylGLkEGsrRHsES4PZZvxxSv4U8ySkP3Uzff7eT6zLMfuero5QklPVDDIX8JbXfaOGbC8lFLyLidvEIOmcGrAjf4aTOA1WLBtOLWjxCM1lbdg75qIOeTkQz8nI6rX/s320/dixit+007.jpg" width="320" /></a></div> <strong><u> आज मकर संकरंती है</u></strong> <br />
सभी को शुभकामनायें.<br />
<strong> आज से ब्लॉग की दुनिया में कदम रख रहा हूँ....</strong>रघुवीर शर्माhttp://www.blogger.com/profile/03893643434108320505noreply@blogger.com1