Sunday, March 29, 2020

दिहाड़ी मजदूरों के लिए मुसीबत बना लॉकडाउन

दिहाड़ी मजदूरों के लिए मुसीबत बना लॉकडाउन प्रधानमंत्री मोदी की और से राष्ट्र के नाम संबोधन में की गई 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा और जनता से की गई सहयोग अपील का असर देश में देखने को मिल रहा है। यह देश को बड़ी मुसीबत से बचाने के लिए लिया गया निर्णय हैं। अचानक लेकिन जनता के हित में लिए गए इस निर्णय से कई परेशानियां खड़ी हो गई है। खासकर असंगठित क्षेत्र के कामगारों के सामने तो लॉकडाउन बड़ी समस्या बनकर आया है। उसका रोजगार छीन गया और साथ ही रहने खाने की समस्या खड़ी हो गई। इनके से सैंकड़ों वह लोग है जो छोटे-मोटे कारखानों दुकानों ढाबों, होटल सहित ऐसी जगहों पर दिहाड़ी मजदूर थे जो बंद हो गए। अचानक आई इस समस्या ने इनके सिर से छत और पेट भरने की मुसीबत खड़ी कर दी। अभी लॉकडाउन के दो दिन बीते है इसके परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं। प्रवासी मजदूरों के रेले सड़कों पर अपने घर जाते हुए देखे जा रहे हैं। ये वो लोग है जिके पास जहां काम कर रहे थे वहां कोई स्थाई रहने का ठिकाना नहीं था। यह समस्या किसी एक प्रदेश या शहर में नहीं सारे देश में है। लॉकडाउन में पीएम का ये संदेश कि ''जो जहां है वहीं रहेÓÓ पर अमल करना इनके लिए कैसे भी संभव नहीं रहा हैं। यातायात के साधन बंद होना इस मुसीबत में एक और समस्या बनी। यह लोग पैदल ही अपने स्थाई बसेरे की और चल दिए हैं। कोरोना से जंग जीतने में इनका पलायन बड़ा रोड़ा बन सकता हैं। क्योंकि किसी को नहीं पता इनमें कौन संक्रमित है जो आगे जाकर कोरोना वाइरस का वाहक बनेेगा। केन्द्र व राज्य सरकारों की और से कोरोना की जंग के लिए घोषित किए राहत पैकेज भी इनके लिए कोई काम नहीं आने वाले हैं। क्योंकि ना तो इनको ये मालूम है कि फ्री के गेहूं-चावल कहां से मिलेगें और अगर मिल भी गये तो ये लोग इनके पास उसे खाने योग्य बनाने की जगह नहीं हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को कारगर रणनीति बनाने की जरूरत है जिसके तहत पलायन को मजबूर कामगारों को रहने खाने की व्यवस्था की जाए। जिससे उनका पलायन तो रूकेगा ही बल्कि उनमें से कोई संक्रमित है तो उसकी भी स्क्रीनिंग की जा सकेगी।